नई दिल्ली: रायबरेली मॉडर्न कोच फैक्ट्री (एमसीएफ) का निगमीकरण का प्रस्ताव जल्द ही पेश किये जाने की सम्भावना है. भारतीय रेलवे द्वारा लाये जा रहे इस प्रस्ताव का उद्देश्य इस फैक्ट्री की कार्यक्षमता में सुधार लाना बताया जा रहा है. कैबिनेट प्रस्ताव जल्द ही पेश हो सकता है.
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों, नीति आयोग, और रेलवे की जल्द ही होने वाली मीटिंग में इस योजना पर जल्द ही कार्य होने की संभावना है.
रेलवे ने रोलिंग स्टॉक बनाने वाली सभी प्रोडक्शन यूनिट्स को निगम बनाने का प्रस्ताव जून 2019 में घोषित 100 दिन की कार्य योजना के अनुसार किया है. उसी प्रकार अपनी सभी आठ प्रोडक्शन यूनिट्स को एक ‘इंडियन रेलवेज़ रोलिंग स्टॉक कॉर्पोरेशन’ में जोड़ने का प्रस्ताव दिया था.
प्रस्ताव के तहत एमसीएफ, कॉर्पोरेट इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ एक इंडिपेंडेंट यूनिट में बदल जाएगी जिससे इसकी कार्यप्रणाली और कार्यक्षमता में सुधार होगा. यह यूनिट वर्तमान में हर साल लिंक हॉफमैन बुश के डिज़ाइन वाले लगभग 2,000 कोच बनाती है.
ये सभी यूनिट्स इंडियन रेलवेज़ रोलिंग स्टॉक कॉर्पोरेशन के अंतर्गत पब्लिक सर्विस अंडरटेकिंग (पीएसयूज़) बना दी जाएंगी, और एक इंडिपेंडेंट बोर्ड के अंतर्गत मंत्रालय के दबाव से अलग होकर कार्य करेंगी. ये यूनिट्स अपने वित्तीय फैसले खुद ले सकेंगी. इससे उन्हें ज़्यादा बेहतर तरीके से काम करने छूट मिलेगी. ये कुछ वैसा ही होगा जैसे वर्तमान में आईआरसीटीसी है, रेलवे के तहत मगर एक स्वायत्त कंपनी.
रोलिंग स्टॉक यूनिट्स के निगमीकरण के अध्ययन का काम, रेल्वे की सहायक कंपनी राइट्स को सौंपा गया था. सभी उत्पादन इकाइयों को ‘बाजार संचालित’, और ‘निर्यात उन्मुख’ बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं. बाजार संचालित होने का लाभ यह होगा कि कम्पटीशन की भावना से कार्यप्रणाली में सुधार होगा.
लेकिन इस विषय पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि निगमीकरण की प्रक्रिया के बाद, कंपनियों के मौजूदा कर्मचारियों का भविष्य क्या होगा. एमसीएफ में लगभग 2,300 कर्मचारी हैं तो क्या उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्कीम (वीआरएस) के लिए मजबूर किया जायेगा?
इस घोषणा के समय काफी विरोध हुआ था. सोनिया गाँधी ने कहा था कि ‘लोग निगमीकरण का असली मतलब नहीं समझते…ये दरअसल निजीकरण की ओर पहला क़दम है. वो देश की संपत्तियों को मिट्टी के दाम, मुठ्ठीभर निजी हाथों में बेच रहे हैं. इससे हज़ारों लोगों का रोज़गार छिन जाएगा’.